– आयुर्वेद चिकित्सा में शारीरिक विकारों को पहचानने के लिए इन बिन्दुओं का आंकलन किया जाता है। नाड़ी, मूत्र, मल, शब्द, जिव्हा, स्पर्शा, दिव्क, आकृति

– भारत सहित अन्य दक्षिणी एशियाई देशों में आयुर्वेद विशेषज्ञ/डॉक्टर बनने के लिए भी डिग्री दी जाती है। जिसे Bachelor of Ayurvedic Medicine and Surgery (BAMS) कहा जाता है।

– कुछ आयुर्वेदिक दवाओं में टॉक्सिक पदार्थ (सीसा, पारा और आर्सेनिक) शामिल होते है, जिसके कारण अमेरिका ने साल 2007 से आयुर्वेद चिकित्सा पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

– आयुर्वेद चिकित्सा में ऐसा माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति अपने केशों (बालों) या रोम को पकड़कर खींचता है, जिससे उसके बाल उखड़ जायें और उसे किसी प्रकार के दर्द की अनुभूति नहीं होती है, तो ऐसा माना जाता हैं, कि उस व्यक्ति की आयु पूर्ण हो चुकी हैं।

शोधन चिकित्सा पद्धति में शरीर के अन्दर के दूषित पदार्थों को उत्सर्जित करके रोगों का उपचार किया जाता है। इस पद्धति में पंचकर्म चिकित्सा आती है। यह एक शुद्धिकरण चिकित्सा पद्धति है। जब रोगी शरीर में विषाणु और कुपोषण से शरीर में अशुधियां उत्पन्न होती हैं तब पञ्चकर्म के द्वारा इसे शुद्ध किया जाता है।

शमन चिकित्सा पद्धति में शारीरिक और मानसिक उपचार के लिए शरीर के आन्तरिक और बाह्य दोषों के असंतुलन को सामान्य करके रोग का उपचार किया जाता है।

एलोपैथी दवाइयों के मुकाबले आयुर्वेदिक दवाइयां थोडा देर से किसी मर्ज़ (बीमारी) का उपचार करती हैं।

आयुर्वेदिक दवाइयां रोग को जड़ से समाप्त करने में सहायता करती है। जिससे वह रोग दुबारा जल्द ही नहीं होता है।

प्रेम

से जुड़े अनोखे

जानने के लिए नीचे क्लिक करें 

मनोवैज्ञानिक तथ्य

मनोविज्ञान  

से जुड़े रोचक तथ्य जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें