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आयुर्वेद के अनुसार
पित्त
शरीर में पाचन, चयापचय की प्रणाली को संतुलित करता है। यह अग्नि और जल से बना होता है।
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यह शरीर के पाचन, अवशोषण, आत्मसात, पोषण, चयापचय और शरीर के तापमान को नियंत्रण में रखता है।
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शरीर में पित्त यदि संतुलित होता है तो बुद्धि और समझने की शक्ति को तेज़ करता है। पित्त संतुलित न होने पर क्रोध, घृणा और ईर्ष्या उत्पन्न करता है।
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आयुर्वेद के अनुसार
वात
शरीर में पाचन, चयापचय की ऊर्जा और शारीरिक संरचना बनाने वाली ऊर्जा को शुद्ध करती है।
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यह वायु और अन्तरिक्ष से मिलकर बना होता है। जो शरीर में गति से जुडी एक सूक्ष्म ऊर्जा के रूप में विद्यमान होती है।
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वात शरीर में श्वास, ह्रदय की धड़कन, मांसपेशियों को संतुलित रूप से संचालित करने में सहायता करता है।
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कफ़ हमारे शरीर की वह ऊर्जा है जो शरीर की संरचना का निर्माण करने में सहायक होता है। यह हमारे शरीर को गोंद प्रदान करता है।
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– क्या आप जानते हैं कि आयुर्वेदिक दवाइयों को बनाने में केवल जड़ी बूटियों का ही इस्तेमाल नहीं किया जाता है। आयुर्वेद में कुछ दवाइयां बनाने के लिए हड्डियां, राख, पित्त, पथरी जैसे अवयवों का भी उपयोग किया जाता है।
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प्रेम
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मनोवैज्ञानिक तथ्य
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मनोविज्ञान
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