चाणक्य नीति

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आचार्य चाणक्य ने जीवन जीने के कुछ ऐसे सूत्र बताये हैं। जिनको यदि जीवन में उतरा जाये तो आपका जीवन सफल हो जायेगा।

चाणक्य नीति

आचार्य चाणक्य ने बताया है की जिस प्रकार एक जन्म से अंधे व्यक्ति को कुछ नहीं दिखाई देता है। उसी प्रकार काम वासना में लिप्त इंसान को वासना के अलावा कुछ और नहीं दिखता है।  

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किसी व्यसन में लिप्त शराबी इंसान की भी स्थिति उसी जन्म से अंधे व्यक्ति की तरह ही होती है। जिसे नशे के अलावा कुछ और नहीं दिखता है।      

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एक स्वार्थी व्यक्ति भी उसी अंधे के सामान होता है जिसे उस व्यक्ति के गुणों में दोष नहीं दिखते जिससे उसके कार्य सिद्द होते हैं।

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आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी इंसान के अच्छे या बुरे कर्मों का परिणाम उसे स्वयं ही भोगना पड़ता है।

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मनुष्य जैसे कर्म करता है उसका फल उसे उसी तरह मिलता है। एक संत जीवन में ईश्वर की आराधना करके भव बंधन (जन्ममरण) से मुक्त हो जाता है।

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और अज्ञानी पुरुष जगत की भौतिकता में लिप्त होकर कर्म करता है जो बार बार विभिन्न योनियों में जन्म लेकर इस संसार में जन्ममरण का चक्कर लगाता रहता है।

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अपने जीवन में ऋण लेकर मरने वाला पिता अपने ही पुत्र का शत्रु बन जाता है। उसी प्रकार बुरे आचरण वाली माता भी अपने पुत्र की शत्रु बन जाती है।

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सुन्दर पत्नी अपने पति की शत्रु बन जाती है और एक मुर्ख पुत्र अपने ही माता पिता का शत्रु बन जाता है।

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