कौन थी शिव जी की पुत्री और किसने किया था उसका अपहरण।

shiv ji daughter

ये तो सभी को ज्ञात होगा कि भगवान शिव शंकर भोले नाथ के दो पुत्र है, सबसे बड़े कार्तिकेय और दूसरे पुत्र प्रथम पूज्य श्री गणेश जी। परंतु भगवान शिव और पार्वती जी की पांच पुत्री भी थी। जिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है।आज हम आपको उसी के विषय में बताएंगे।

शिव पुत्री का जन्म

शिव महापुराण के अनुसार शिव जी और पार्वती जी के 2 पुत्र और 5 पुत्रियां हुई। इस संदर्भ में एक कथा इस प्रकार आती है कि एक बार नारद जी विचरण करते हुए मृत्यु लोक (धरती लोक) में पहुँचे वहाँ वह एक राजा आयु के यह पहुंचे। उसी समय उस राजा के एक पुत्र हुआ। उसका नाम “नहुष” था। उस दिन रक्षाबंधन था, राजा की पुत्री ने अपने भाई को राखी बांध दी, ये सब नारद जी देख रहे थे। उनका मन भी राखी बंधवाने का हुआ तो नारद जी ने राजा की पुत्री को बहन कह कर पुकारा और बोला कि बहन क्या मुझे राखी नहीं बाँधोगी।

इतना सुनते ही राजा की पुत्री ने नारद जी को भी राखी बांध दिया। इस प्रकार नारद जी को एक बहन मिल गयी। अब नारद जी विचरण करते हुए कैलाश पर्वत पहुंचे जहां उन्होंने भगवान शिव जी के साथ पार्वती जी और उनके दोनों पुत्रों के (कार्तिकेय और गणेश जी) के दर्शन किये। गणेश जी ने जब नारद जी के हाथों में राखी बांधी हुई देखी तो गणेश जी का पूंछा की देवर्षि ये आपके हाथ मे क्या बंधा है, तो नारद जी ने कहा कि ये तो राखी है जो हर रक्षाबंधन को बहन अपने भाई की कलाई पर बांधती है। ये सुनते ही गणेश जी ने कहा कि मैं भी राखी बाँधूँगा। तो नारद जी बोले लेकिन आपकी तो कोई बहन ही नहीं है। तब गणेश जी ने अपने माता पिता से आग्रह किया की उनको एक बहन दे दे। इतने में माता पार्वती के मुख से निकला की काश हमारी एक बेटी भी होती तो आज हमारे पुत्रों को राखी बांधती।

इतना कहते ही कैलाश में एक ध्वनि गूंजी की “ऐसा अवश्य ही होगा आपको पुत्री प्राप्त होगी। वह आवाज़ कैलाश पर्वत पर लगे एक कल्प वृक्ष से आ रही थी। भगवान् शिव शंकर जी ने माता पार्वती से कहा की आप कल्प वृक्ष के नीचे जाकर अपनी मनोकामना मांगे। तो आपको पुत्री अवश्य प्राप्त होगी। माता जी ने ऐसा ही किया। और उनकी गोद में एक बालिका आ गयी। भगवन भोले नाथ ने उसका नाम अशोक सुंदरी रखा। इस प्रकार माता पार्वती और भगवान् शिव को एक पुत्री प्राप्त हुई और उनके पुत्रों को एक बहन मिल गयी।

किस राक्षस ने किया शिव पुत्री का अपहरण

अशोक सुंदरी जब बड़ी हो गयी तो वह एक दिन अपनी सखियों के साथ वन में विचरण करते हुए धरती लोक तक पहुंच गयी। वे धरती की अलौकिक सुंदरता पर मोहित हो गयी और अपनी सखियों के साथ पृथ्वी पर आ गयी। अचानक वहाँ एक राक्षस जिसका नाम हुण था वो वह आ गया, और राजकुमारी अशोक सुंदरी को अपहरण कर के ले जाने लगा। उसी समय राजा आयु के पुत्र राजकुमार नहुष जिनका पालन पोषण महर्षि वशिष्ट और माता अरुंधति ने किया था । वह वन में अपने मित्रों के साथ क्रीड़ा क्र रहे थे। अचानक उनको किसी के चीखने की आवाज़ सुनाई दी। उनको लगा की किसी नारी को मदद की आवश्यकता है। उन्होंने तुरंत अपना बाण निकला और राक्षस पर प्रहार किया। और उस राक्षस से युद्ध करके राजकुमारी के प्राण बचाये। बाद में अशोक सुंदरी को राजकुमार नहुष से प्रेम हो गया। और नारद जी ने उनका विवाह करवा दिया।

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