राजा जनक ने अपनी प्रजा को और अपने राज्य को प्राकृतिक सूखे से बचाने के लिए किसान बन कर हल चलाया और खेत जोता तभी उनको धरती में एक मिट्टी का घड़ा मिला जिसमें एक कन्या थी। उसका नाम सीता रखा जो माता लक्ष्मी का अवतार थी। जब वो बड़ी हुई तो राजा जनक ने उनका विवाह करने के लिए स्वयंवर रखा। स्वयंवर में सीता जी से विवाह करने के लिए सभी राजा आये, इसी में राक्षस राज रावण भी आया था।
स्वयंवर की शर्त ये थी कि जो महादेव शिव जी के धनुष पिनाक पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा उसका विवाह जानकी सीता जी से किया जाएगा। सबने प्रयास किया पर कोई उस शिव धनुष की प्रत्यंचा नही चढ़ा पाया, रावण भी नहीं जब उसने शिव धनुष को उठाना चाहा तो वह भी न उठा सका ओर शिव जी के धनुष को प्रणाम करके वापस लौट गया। फिर भगवान श्री राम जी आये उन्होंने धनुष पर जैसे ही प्रत्यंचा चढ़ाई वैसे ही शिव धनुष भंग हो गया।
शिव धनुष भंग होने पर भगवान परशूराम जी बहुत क्रोधित भी हुए थे। परंतु बाद में श्री राम जी ने बड़ी ही विनम्रता से उन्हें शांत किया। और उनका विवाह जनक दुलारी सीता जी के साथ संपन्न हुआ।
क्यों हुए परशुराम जी शिव धनुष भंग होने पर क्रोधित
परशुराम जी जाति से ब्राम्हण थे उनके पिता महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका थी। वे उनके पांचवे पुत्र थे और भगवान विष्णु जी के छठे अवतार थे। परंतु उन्होंने सम्पूर्ण पृथ्वी से क्षत्रियों को 21 बार समाप्त किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव जी ने स्वयं उन्हें अपना धनुष पिनाक परशुराम जी को दिया था। कालांतर में ये धनुष परशुराम जी ने राजा जनक को दे दिया था।
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उस धनुष को कोई उठा भी नही पाता था परंतु माता सीता उसे बचपन मे खेल खेल में उठा दिया करती थी। परशुराम जी की शिव जी मे बहुत अधिक आस्था थी। वे शिव जी के बहुत बड़े भक्त थे। अतः उन्हें शिव धनुष बहुत अधिक प्रिय था। इसी कारण जब भगवान राम जी ने शिव धनुष तोड़ा तो उन्हें बहुत क्रोध आ गया था।
शिव धनुष तोड़ने के पीछे क्या रहस्य था।
प्राचीन काल की बात है एक बार देवी लक्ष्मी और देवी पार्वती में इस बात को लेकर बहस होने लगी कि महादेव ओर विष्णु जी मे कौन श्रेष्ट है। दोनो देवियाँ अपने अपने पतियों को श्रेष्ठ बताने लगीं बात इतनी आगे बढ़ गयी कि उसका निर्णय करने के लिए ब्रम्हाजी को बुलाया गया। ब्रम्हाजी ने निष्कर्ष निकलते हुए कहा कि वैसे तो भगवान शिव और विष्णु जी एक दूसरे के भक्त है उनमें श्रेष्ठता का कोई प्रश्न ही नही उठता परंतु अगर आप देवियों की यही इच्छा है तो युद्ध से ही पता लगाया जा सकता है कि कौन श्रेष्ठ है।
जो युद्ध में जीतेगा वही श्रेष्ठ कहलायेगा। फिर भगवान विष्णु और महादेव शिव जी के मध्य युद्ध आरम्भ हुआ। जो अनेकों वर्षों तक चलता रहा, भगवान शिव जी के पास उनका धनुष पिनाक था, और भगवान विष्णु अपने धनुष शारंग से एक दूसरे पर प्रहार कर रहे थे। परंतु कोई निष्कर्ष नही निकला। अंत में युद्ध रोक दिया गया। तब देवी लक्ष्मी और माता पार्वती जी को आभास हुआ कि दोनो तो जगत का संचालन करते है। इनमे श्रेष्ठता का कोई प्रश्न ही नही किया जा सकता है।
भगवान विष्णु जगत के पालनहार है तो महादेव जगत के संघारक है। इन दोनों के बिना तो श्रष्टि नही चल सकती। अंत मे दोनो ने अपने धनुष को परशुराम जी को दे दिया। और उसका संरक्षण करने के लिए कहा। बाद में उन्होंने शिव जी के धनुष को राजा जनक को दे दिया। और भगवान विष्णु जी के धनुष को अपने पास रखा।
एक पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में जब भगवान राम का जन्म राजा दशरथ के पुत्र रूप में हुआ तब उस संसार में पिनाक और शारंग दोनो ही धनुष विद्यमान थे। श्री राम जी ने भगवान विष्णु जी के अवतार के रूप में जन्म लिया था, और जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ता है, तब तब भगवान किसी न किसी रूप में अवतार लेते है। त्रेता युग मे भी कई राक्षसों का अत्याचार बढ़ चुका था। उन्ही में एक राक्षस राज रावण था।
जिसका संहार करने के लिए भगवान विष्णु ने श्री राम चन्द्र के रूप में जन्म लिया था। राक्षस रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। भगवान शिव पर उसकी बहुत ही आस्था थी। उस समय भगवान विष्णु के शारंग धनुष का सामना केवल शिव जी का पिनाक ही कर सकता था। अतः रावण का वध करने में कोई बाधा न आ जाये। इसलिए भगवान राम ने माता सीता के स्वयंवर में शिव धनुष पिनाक को तोड़ दिया था।
इस लेख में बताई गई शिव धनुष के टूटने की कथा को पौराणिक ग्रंथों के माध्यम से बताया गया है। पौराणिक कथाओं से जुड़े रहस्यों के विषय मे जानने हेतु हमे कमेंट करें।