दुर्योधन के मरने के बाद महाभारत युद्ध समाप्त हो गया था। धृतराष्ट्र के सभी 99 पुत्रों की मृत्यु हो चुकी थी। कौरवों की माता गांधारी, पिता धृतराष्ट्र और दुर्योधन की पत्नी भानुमती उसके शव के पास बैठकर विलाप कर रहे थे। धृतराष्ट्र रोते हुए कहने लगे कि आखिर मैंने ऐसा कौन सा पाप किया था जिसके कारण मुझे जीते जी अपने सभी पुत्रों के शवों को कंधा देना पड़ रहा है।
वही पास में भगवान श्री कृष्ण भी खड़े थे उन्होंने दुखी धृतराष्ट्र को बहुत समझाया की यह तो पहले ही निश्चित हो गया था की इस युद्ध में समस्त कुरुवंश का नाश हो जायेगा I मैने बहुत प्रयाश किया था इस युद्ध को टालने का परन्तु दुर्योधन की हठ और आपके पुत्र मोह के कारण इस युद्ध को टालना असंभव हो गया था जिसके कारण धर्म की रक्षा के लिए युद्ध ही एक मात्र उपाय रह गया था I
तब धृतराष्ट्र ने यह कहा की आप कोई साधारण पुरुष नहीं है आप तो साक्षात् नारायण के अवतार है I कृपा कर के आप हमें बताईये की आखिर मैंने ऐसा कौन से पाप किया जिसके कारण मुझे अपने 99 पुत्रों के शव उठाने का भीषण दुःख प्राप्त हुआ।
तब श्री कृष्णा जी ने अपने योग बल से धृतराष्ट्र के पिछले जन्मों को देखना प्रारम्भ किया। उन्होंने राजा धृतराष्ट्र के पिछले 99 वें जन्म में एक घटना ऐसी दिखाई दी जिसके कारण राजा धृतराष्ट्र को उनके कर्मों का फल भोगने पड़ा। भगवान कृष्ण ने बताया कि कोई भी अपने कर्मों के फल से नहीं बच सकता है। चाहे वो अच्छे हो या बुरे। अतः उन्होंने धृतराष्ट्र के पूर्व जन्म में घटित हुई उस घटना को बताया।
क्या थी वह घटना
भगवान श्री कृष्ण ने बताया की धृतराष्ट्र ने अपने पिछले 98 जन्मों में बहुत से पुण्य किये। लेकिन वह अपने 99 वे जन्म में एक भील राजा था। जो अपनी प्रजा को बहुत प्रेम करता था। उसकी प्रजा भी उसे बहुत सम्मान देती थी। उसके राज्य में सभी खुश थे। उनके राज्य में एक भील पति पत्नी मलंग और कोनी रहते थे। उनके कोई संतान नहीं थी। कोनी इसी बात को लेेेकर अक्सर रोती रहती थी।
एक दिन कोनी अकेले में बैठकर रो रही थी इतने में उसका पति मलंग आया और उसने उसे शांत कराने की बहुत कोशिश की और कहा कि अगर तुम दुखी होगी तो ईश्वर को भी दुख होगा और अपनी सौगंध देते हुए कहा कि अगर अब तुम रोगी तो मेरा मरा मुख देखोगी। तब कोनी शांत हो गयी और कभी भी न रोने का निश्चय किया।
कुछ दिन बीत गए और एक दिन मलंग जब शिकार पर गया। तब कोनी चावल बीनने में लग गयी। थोड़ी देर बाद वहीं पर कुछ चिड़िया आ गयी और चावल के दाने चुगने लगी देखते देखते वहां बहुत सी चिड़िया आ गयी। ऐसा प्रतिदिन होने लगा। कोनी ने अपने पति से बोलकर उन सभी चिड़ियों के लिए घर बनवा दिया। अब वह सारी चिड़िया वहीं रहने लगी। कोनी उन सभी पक्षियों को अपने बच्चे की तरह मानने लगी थी।
एक दिन मलंग जब शिकार पर गया लेकिन दिनभर उसे कोई भी शिकार नही मिल पाया। फिर उठाए एक पेड़ पर कुछ पक्षी दिखे वह उन पर अपने बाण से निशाना साधा अचानक उसे उन पक्षियों के बीच उसकी पत्नी दिखाई दी जो उससे गुस्से में कह रही थी कि जिसे मैं अपने बच्चे की तरह मानती हूं क्या तू उसे मारेगा? इतना सुनकर मलंग का मन परिवर्तित हो गया। और उसने उसी समय निश्चय किया कि वह अब कभी भी किसी पशु पक्षी का आखेट (शिकार) नही करेगा।
घर आकर उसने यह सारी बात अपनी पत्नी को बताई। उसकी पत्नी ने पूछा कि अब वह क्या करेगा। तो मलंग ने कहा कि अब मैं खेती करूँगा। कोनी बहुत खुश हुई। उसने मलंग से सोमनाथ बाबा के दर्शन की इच्छा प्रकट की। यह सुनकर मलंग भी तैयार हो गया लेकिन उनके आगे एक समस्या थी वह दोनों उन सभी पक्षियों को यात्रा पर कैसे ले जाते। दोनों उन पक्षियों को अपने बच्चों के समान मानते थे।
मलंग ने कहा कि वह अपने पक्षियों को राजा के पास छोड़ देगा। फिर यात्रा पर दोनों जाएंगे इसपर कोनी ने सहमति जताई और कहा की राजा के पास तो हमारे बच्चे बहुत ही सुरक्षित रहेंगे। वह दोनों राजा के पास अपने बच्चों को साथ लेकर गए और राजा से सारी बात बताई। राजा बहुत खुश हुआ और उनको जाने की आज्ञा दे दी। वह दोनों यात्रा पर निकल गए।
दोनों के यात्रा पर जाने के कुछ दिन बाद राजा को अपच का रोग लग गया। जिसके कारण राजा बीमार हो गया। वह कुछ भी खाता तो उसे पचता नहीं। सारा राज्य इस बात से परेशान था। उसका रसोइया भी बहुत परेशान था कि वह आखिर राजा को ऐसा क्या खिलाये जो राजा को पचे और राजा ठीक हो जाये।
एक दिन उस रसोइये को किसी ने कहा की क्यो न तू अपने राजा को प्रतिदिन के भोजन के अलावा कुछ और बना के खिला। रसोइया इस बात से सहमत हो गया कि शायद मेरे ऐसा करने पर राजा का रोग ठीक हो जाये। उसने फिर मलंग और कोनी के पक्षियों में से एक का मांस बना के राजा को दिया। जिसे खाकर राजा ठीक हो गया। फिर उसने प्रतिदिन राजा को उन्ही पक्षियों का मांस बना कर राजा को खिलाया। धीरे-धीरे करके उसने सभी 99 पक्षियों को भोजन के रूप में राजा को खिला दिया। राजा को पता भी नहीं चला।
फिर वह दिन भी आ गया जब मलंग और कोनी वापस यात्रा से आये और राजा से मिले उनको भगवान सोमनाथ का प्रसाद दिया। राजा बहुत खुश हुआ दोनों ने अपने बच्चों (पक्षियों) को राजा से मांगा। राजा ने अपने मंत्री से उनके पक्षियों को लाने को कहा। मंत्री गया परंतु वापस नहीं आया। उसने फिर अपने अन्य दरबारियों को भेज परंतु वे सभी वापस नही आये। राजा ने क्रोध में आकर उन सबको बुलाया और पूछा तो मंत्री ने सारी बात बताई।
राजा को मिला शाप
राजा को यह बात सुनकर आश्चर्य हुआ लेकिन अनजाने में ही सही पाप तो उससे हो गया था। यह सब जानकर कोनी ने क्रोध में आकर राजा को शाप देते हुए कहा “क्या तू अंधा हो गया था जब अपने भोजन में मेरे बच्चों को खा रहा था? ” जा मैं तुझे शाप देती हूँ कि तू भी अंधा हो जाएगा और जैसे तूने मेरे 99 बच्चों को खाया है उसी प्रकार तेरे जीते जी तेरे 99 बच्चों की मृत्यु हो जाएगी।
इसी शाप के कारण धृतराष्ट्र जन्म से अंधे हुए और उनको जीते जी आपने सभी 99 पुत्रों के शवों को उठाना पड़ा। कोनी और मलंग इस जन्म में पांडु और कुंती के रूप में जन्में और अपने पूर्व जन्म के शाप को फलीभूत किया।
इस लेख में जिस सच्ची कथा का उल्लेख किया गया है वह कथा सनातन हिन्दू धार्मिक ग्रंथों व पुराणों के आधार पर बताई गई है। आपको यह सच्ची कथा कैसी लगी हमे कॉमेंट करके बता सकते हैं।