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आज वृन्दावन ही नहीं पूरे भारत तथा विदेशों में भी महाराज श्रीहित प्रेमानंद जी को लोग अपना भगवान मानते हैं। वे हैं ही ऐसे की अपनी वाणी से किसी के भी जीवन के जटिल से जटिल प्रश्नों के उत्तर बड़े ही सरल शब्दों में देकर लोगों के मन को शांति प्रदान करते हैं। आज हम इस लेख के माध्यम से आपको उनकी बताई गयी सीख के विषय में जानेंगे।
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श्री प्रेमानंद जी के प्रवचन
श्री प्रेमानंद जी महाराज अपने प्रवचनों में अक्सर यह बताते हैं कि इस कलियुग में संसार के हर मनुष्य जितना हो सके नाम जप करते रहना चाहिए। क्योंकि यही एक मात्र मोक्ष पाने या पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त होने का मार्ग है। महाराज जी के आश्रम में भक्त उनसे अपने जीवन की समस्याओं से जुड़े प्रश्न पूछते हैं जिसका उत्तर महाराज जी बड़े ही सरल तरीके से बताते हैं, जो हर किसी की समझ में आ जाते हैं।
महाराज जी कहते है कि मनुष्य को किसी के द्वारा किये गए मान सम्मान को विष की तरह मानना चाहिए तथा किसी के द्वारा किये गए अपमान को अमृत के समान मानकर ग्रहण करना चाहिए। क्योंकि जहां मान प्रिय लगने लगे वहां से मन की साधुता चली जाती है। भगवान की प्राप्ति में मान सबसे बड़ा बाधक बनता है।
किसी भक्त ने यह प्रश्न पूंछा की महाराज जी मेरे अंदर अहंकार बहुत जल्दी आ जाता है मैं क्या करूँ। इस पर महाराज जी कहते है कि मनुष्य को अपने अन्दर के अहंकार को भगवान को सौंप देना चाहिए। मनुष्य को सांसारिक वस्तुओं का अहंकार न करके यह अहंकार करना चाहिए कि भगवान मेरे हैं और मैं भगवान् का दास हूँ।
गुरु जी अपने प्रवचन में कहते हैं कि आप चाहे तीर्थ यात्रा न करो। वहां जाकर चाहे कोई दान इत्यादि न करो। न ही किसी प्रकार की माला करो। बस अपने माता-पिता को ईश्वर के रूप में देखो और उनकी सेवा करते हुए। जो मन्त्र आपको मिला है या आपको पसंद है। केवल उस मन्त्र का जाप अपने माता-पिता की परिक्रमा करते हुए करो। भगवान इससे प्रसन्न हो जाएंगे।
आपके माता-पिता चाहे जितना भी आपको डांटे या कहे। आपको उनकी बातों का कभी बुरा नही मनना चाहिए। अक्सर जब माता-पिता की उम्र ज्यादा हो जाती है। तब उनकी वाणी से कभी कभार कुछ कटु शब्द निकल जाते हैं। ऐसे में उनको कभी भला बुरा नहीं कहना चाहिए।
गुरुजी के आश्रम में रोजाना भक्त आते हैं अपनी समस्या लेकर ऐसे ही एक भक्त वहां आये। उनका प्रश्न यह था कि “महाराज जी में एक वैज्ञानिक हूँ। मुझे अपनी प्रयोगशाला में अक्सर दवाइयों के प्रयोग करने होते है। जिसमें चूहों पर वह प्रयोग किये जाते हैं। कुछ प्रयोग सफल हो जाते हैं। लेकिन कुछ प्रयोग सफल नहीं हो पाते है तो उन चूहो की हत्या भी करनी पड़ती है। तो महाराज जी क्या हमें उसका पाप भोगना पड़ेगा।
श्री प्रेमानंद जी ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि किसी भी कर्म का प्रारब्ध यदि गलत है तो अवश्य ही उस गलत कर्म का पाप मिलेगा। लेकिन यदि किसी अच्छे प्रारब्ध के लिए किए गए कर्म में यदि किसी की जान भी चली जाए तो वह कर्म पाप नहीं कहलाता है।
श्री प्रेमानंद जी की कथाये
श्री प्रेमानंद जी महाराज पिछले 18 सालों से एक ऐसी बीमारी से पीड़ित हैं। जिसके कारण उन्हें हर दिन कष्ट सहन पड़ता है। एक बार उनके पास एक भक्त आया और कहने लगा कि महाराज जी ‘मैं कई सालों से राधा नाम का जाप कर रहा हूँ। लेकिन मुझे सुख नही प्राप्त हुआ।” इतना कहना था कि महाराज जी क्रोधित होकर बोले। “पिछले 18 वर्षों से मेरी दोनों किडनी ख़राब हैं। डॉक्टर ने केवल 2 साल का जीवन बताया था। लेकिन आज भी मैं जीवित हूँ। यह सब राधा नाम का ही तो प्रताप है जिसके कारण मैं उनका भजन आज भी कर पा रहा हूँ, और तुम कहते हो कि नाम जप करने से सुख नहीं प्राप्त होता है।”
हमारे जीवन का सुख दुःख हमारे कर्मों से मिलता है। मनुष्य अपने कर्मों से पीछा नहीं छुड़ा सकता है। अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मों का फल बुरा भोगना पड़ता है। चाहे पिछले जन्म का हो या इस जन्म का। केवल नाम जाप ही है जो आपको कर्मों को भोगने की शक्ति प्रदान करता है। जिस प्रकार मैं अपने कर्मों को भोग रहा हूँ। राधा नाम जाप मुझे इस कठिन दुःख को सहने की शक्ति देता है।
श्री प्रेमानंद जी के मंत्र
महाराज जी अपने शिष्यों को कहते हैं कि आप किसी भी मंत्र का जाप कर सकते हैं लेकिन उस मंत्र में श्रद्धा के साथ। वैसे महाराज जी सभी को राधा नाम का जाप करने के लिए कहते हैं। लेकिन अगर आप पहले से ही किसी गुरु जी से मंत्र ले चुके हैं तो आपको वही मंत्र का जाप करना चाहिए। नाम जप में बहुत शक्ति होती है जिसके बल से बड़े से बड़े दुखों का नाश हो जाता है। श्री हनुमान जी ने अपने जीवन में श्री राम का नाम जप ही किया। जिसके बल से वह बड़े से बड़े और जटिल से जटिल कार्य कर देते थे।
किसी भी गंभीर समस्या के समय जब आप किसी ऐसी कठिनाई में फास जाते हैं तो महाराज जी ने एक मंत्र बताया है। जिसके बारे में महाराज जी कहते हैं कि इस मन्त्र का जाप करने से भगवान कृष्ण आपकी समस्या को अपना बना लेते हैं, और वे जल ही उस समस्या का समाधान कर देते हैं। वह मंत्र है-
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने
प्रणतः क्लेश्नाशय गोविन्दाय नमो नमः
इस लेख में हमने श्री प्रेमानंद जी के प्रवचन का संकलन किया है। जो महाराज जी लोगों को बड़े ही सरल शब्दों में समझाते हैं। ऐसे ही और भी प्रवचनों का संकलन आगे हम इस लेख में बताते रहेंगे ऐसी ही और भी जानकारी पाने के लिए होमपेज पर जाएँ।