श्री प्रेमानंद जी महाराज कौन हैं? जीवन परिचय, आश्रम पता, कथा एवं प्रवचन 2023

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प्रेमानंद जी महाराज, जो राधारानी के अद्वितीय भक्त और वृंदावन के निवासी थे, आजकल के समय में एक प्रसिद्ध संत के रूप में पहचाने जाते हैं। उनके भजन और सत्संग में लोग दूर-दूर से आते हैं, और उनकी प्रसिद्धि व्यापक है।

कहा जाता है कि भगवान शिव ने व्यक्तिगत रूप से प्रेमानंद जी महाराज से मिलकर उन्हें आशीर्वाद दिया। इस महत्वपूर्ण मिलन के बाद, प्रेमानंद जी महाराज ने अपने सामान्य जीवन को छोड़कर वृंदावन की ओर प्रस्थान किया। क्या आपने विचार किया है कि प्रेमानंद जी महाराज ने कैसे आम जीवन को त्यागकर भक्ति के मार्ग को अपनाया और संन्यासी बनने का निर्णय लिया? आइए, हम अब जानते हैं कि प्रेमानंद जी महाराज के जीवन के रहस्यमयी पहलुओं को।

Premanand ji Maharaj Biography Overview

प्रेमानंद जी महाराज जानकारी
बचपन का नामअनिरुद्ध कुमार पांडे
जन्म स्थलउत्तर प्रदेश, कानपुर, सरसोल ब्लॉक, अखरी गांव
माता-पिता का नाममाता रमा देवी और पिता श्री शंभू पाण्डेय
घर त्यागा13 साल की आयु में
महाराज जी के गुरुश्री गौरंगी शरण जी महाराज गुरु, 10 वर्ष सेवा
महाराज की उम्रलगभग 60 वर्ष
वेबसाइटvrindavanrasmahima.com
आश्रम का पता वृन्दावन, उत्तर प्रदेश

श्री प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय :

श्री प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय

प्रेमानंद जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था। उनके पिता का नाम श्री शंभू पांडे और माता का नाम श्रीमती रामा देवी था। उनके दादाजी ने संन्यास ग्रहण किया था और उनके पिताजी भगवान की भक्ति करते थे, इसके साथ ही उनके बड़े भाई भी प्रतिदिन भगवत का पाठ किया करते थे।

प्रेमानंद जी के परिवार में भक्तिभाव का आत्मा था, जिसका प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा। वे बताते हैं कि जब उन्होंने 5वीं कक्षा में पढ़ाई शुरू की, तो गीता का पाठ भी शुरू हो गया था। इसी तरह से धीरे-धीरे उनकी रुचि आध्यात्म में बढ़ने लगी और उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होने लगी। जब उन्होंने 13 वर्ष की आयु में ब्रह्मचारी बनने का निर्णय लिया, तब उन्होंने घर को त्यागकर संन्यासी बनने का निर्णय लिया। संन्यासी जीवन की शुरुआत में उनका नाम आर्यन ब्रह्मचारी रखा गया था।

प्रेमानंद जी का संन्यासी जीवन

संन्यासी जीवन में वे दिन, जब प्रेमानंद जी महाराज ने भूखे पेट जीवन गुजारे, हमें अपने आदर्शों का साक्षात्कार कराते हैं। वे संन्यासी बनने के बाद घर को त्यागकर वाराणसी पहुँचे और वहाँ अपने आध्यात्मिक साधनाओं में जुट गए। वे प्रतिदिन तीन बार गंगा में स्नान करते थे और तुलसी घाट पर भगवान शिव और माता गंगा की पूजा करते थे। वे दिन में एक बार ही भोजन करते थे, लेकिन उनकी भूख पूरी नहीं होती थी। प्रेमानंद जी महाराज अपनी आत्मा की अध्यात्मिक सुरक्षा के लिए भिक्षा मांगने जाते थे, लेकिन उनकी भिक्षा भी आसानी से नहीं मिलती थी। वे कई दिनों तक भूखे रहकर आत्मा की ऊर्जा को ऊंचाइयों तक पहुँचाते रहे।

इन दिनों का अनुभव उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने उन्हें साधना और त्याग की महत्वपूर्ण शिक्षा दिलाई। वे आत्म-नियंत्रण में अपने मन, शरीर और आत्मा को संयमित रखने की कला को सीखते रहे, जिसने उन्हें आध्यात्मिक उन्नति की ओर आगे बढ़ने में मदद की।

प्रेमानंद जी की चमत्कारी कहानी

प्रेमानंद महाराज जी के संन्यासी बनने के बाद की वृंदावन पहुंचने की आश्चर्यजनक कहानी अत्यधिक प्रेरणा देने वाली है। एक दिन, एक अज्ञात संत महाराज जी से मिलने आए और उन्हें बताया कि श्री हनुमत धाम विश्वविद्यालय में एक आयोजन हो रहा है, जिसमें दिन में श्री चैतन्य लीला और रात्रि में रासलीला का आयोजन किया गया है और आपको भी आमंत्रित किया गया है। प्रेमानंद महाराज ने पहले तो उनका आमंत्रण नकार दिया, लेकिन संत ने उनसे इतनी विनयपूर्ण भाषा में प्रार्थना की कि उन्होंने आखिरकार आमंत्रण स्वीकार कर लिया।

प्रेमानंद महाराज जब चैतन्य लीला और रासलीला का आयोजन देखने गए, तो उनका मनमोहक अनुभव हुआ। यह आयोजन लगभग एक महीने तक चलता रहा, और इसके बाद उनके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि रासलीला को और अधिक देखने का अवसर कैसे मिलेगा। उन्होंने उस संत से मिलकर कहा कि उन्हें भी रासलीला को देखने की इच्छा है और उनके बदले में वे उसकी सेवा करेंगे।

संत ने उन्हें संज्ञान दिलाया कि वृंदावन जाने पर वे रासलीला का आनंद ले सकेंगे, क्योंकि वहां दिन-रात रासलीला देखने का अवसर मिलता है। प्रेमानंद महाराज ने इसे सुनकर वृंदावन जाने का निर्णय लिया और वहां पहुंचकर राधारानी और श्रीकृष्ण के चरणों में लीन हो गए, जिससे कि उनका आत्मा संयमित हो गया और वे भगवद् प्राप्ति की दिशा में अग्रसर हो सके। इसके बाद महाराज जी भक्ति मार्ग में आगे बढ़े और राधा वल्लभ सम्प्रदाय से जुड़ गए।

प्रेमानंद जी महाराज किडनी की चमत्कारी कहानी

प्रेमानंद महाराज जी की किडनी के बारे में आपने तो सुना ही होगा। पिछले 17 सालों से उनकी दोनों किडनी खराब हो चुकी हैं। डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया है कि वे अब कुछ ही दिनों के मेहमान हैं। लेकिन आज भी वे डायलिसिस के लिए जाते हैं और प्रतिदिन लोगों से मिलते हैं उनकी समस्याओं का समाधान भी करते हैं।

प्रेमानंद जी ने अपने दोनों किडनीयों का नाम भी रखा हुआ है। उन्होंने अपनी एक किडनी का नाम राधा और दूसरी किडनी का नाम कृष्ण रख दिया है। और यह चमत्कार ही है जो वे पिछले 17 सालों से जीवित है। उन्होंने अपना जीवन श्री राधे श्याम को समर्पित कर दिया है।

प्रेमानंद जी महाराज की आयु

प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज जी की वर्तमान आयु लगभग 60 वर्ष है। उन्होंने अपने संन्यासी जीवन की शुरुआत 13 वर्ष की आयु में ही कर दी थी। उसके बाद, वे वृंदावन आकर राधा रानी के प्रेम में रंग रहे हैं और उनका भक्तिमय जीवन राधा वल्लभ सम्प्रदाय के साथ जुड़ गया है।

प्रेमानंद जी महाराज आश्रम पता

प्रेमानंद जी महाराज का आश्रम वृंदावन, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
आश्रम का पूरा पता : परिक्रमा मार्ग, पुरानी काली देह, वृन्दावन, राजपुर खदर, उत्तर प्रदेश – पिन कोड- 281121

प्रेमानंद जी महाराज की कथा-प्रवचन :

प्रेमानंद जी महाराज की कथा-प्रवचन आप यूट्यूब पर भजन-मार्ग नाम के चैनल पर सुन व देख सकते हैं। महाराज जी प्रतिदिन अपने वृन्दावन आश्रम में लोगों के प्रश्नों को सुनते हैं व उनकी सभी समस्याओं को बड़े ही सरल तरीके से सुलझा देते हैं।

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