चाणक्य नीति

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चाणक्य नीति

चाणक्य कहते हैं मनुष्य का जीवन बहुत ही सौभाग्य से मिलता है। इसलिए यदि यह जीवन थोड़े ही समय के लिए ही क्यों ना हो इस जीवन में मनुष्य को सदैव पुण्य और उत्तम कार्य करते रहना चाहिए।

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यह शरीर अनित्य है अर्थात नाशवान है, धन-संपत्ति भी सदा किसी के पास स्थित नहीं रहती हैं, मृत्यु ही सदैव सत्य है और यह सदा प्रत्येक प्राणी के पास रहती है। इसलिए हर मनुष्य को धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए। धर्म ही मृत्यु के बाद मनुष्य का साथ देता है।

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जिस मनुष्य को अपने घर से अधिक लगाव होता है उसे कभी विद्या प्राप्त नहीं हो सकती है।

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जो मनुष्य मांस खाता है उसमें कभी दया नहीं हो सकती है।

चाणक्य नीति

जो व्यक्ति धन का लोभी होता है उसमें सत्यता नहीं पाई जाती है।

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दुराचारी व्यभिचारी और भोग विलास में लगे रहने वाले मनुष्य में कभी पवित्रता नहीं होती है।

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जिस प्रकार नीम के वृक्ष को दूध और घी से सीचने पर भी उसमें मिठास पैदा नहीं होती उसी प्रकार दुर्जन व्यक्ति को अनेक बार समझाने बुझाने पर भी वह सज्जन नहीं हो पाता है।  

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जिस मनुष्य का अंतः करण काम और वासना आदि से भरा हुआ है। ऐसा मनुष्य यदि सैकड़ों बार भी तीर्थ स्नान कर ले तब भी पवित्र नहीं हो सकता है।

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शराब रखने वाले बर्तन को यदि अग्नि से भी पवित्र करने की कोशिश की जाए तब भी वह अपवित्र ही रहता है वह बर्तन कभी शुद्ध नहीं हो सकता।

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