चाणक्य नीति

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चाणक्य नीति

चाणक्य कहते हैं कि यदि तुम मुक्ति पाना चाहते हो तो अपने अंदर की बुरी आदतों और बुरे व्यसनों को जल्द ही त्याग दो। और सत्य दया क्षमा सरलता और पवित्रता को अमृत के समान ग्रहण करो।

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अपने अंतःकरण को शुद्ध करके ही तुम मुक्ति को प्राप्त कर सकते हो। अंतः करण को शुद्ध करने के लिए तुम्हें अपनी बुरी आदतों और नशे की लत को त्यागना होगा।

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ईश्वर की शरण ग्रहण करनी होगी। अपने अंदर सत्य दया क्षमा सरलता पवित्रता जैसे गुणों को लाना होगा तभी इस जन्म मरण से मुक्ति प्राप्त कर सकते हो।

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मनुष्य की बुरी आदतें बंधन के समान होती हैं जिसमें मनुष्य फसता ही चला जाता है। इन से छूटने के लिए सिर्फ एक साधन है और वह है ईश्वर की शरण। आपके व्यसन और और आपकी आदतें आपको ईश्वर की शरण में जाने से रोकते हैं। वह ईश्वर की

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परंतु जो अपनी इंद्रियों को वश में करने का प्रयास करता है शरण में जा सकता है और मुक्ति का मार्ग खोज सकता है।

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अमृत को सभी औषधियों में सबसे श्रेष्ठ माना गया है। अमृता नाम की औषधि जिसे गिलोय कहा जाता है इसे भी अमृत के समान माना गया है क्योंकि गिलोय में अमृत्व के गुण पाए जाते हैं। रोगों से मुक्ति पाने के लिए गिलोय का सेवन किया जाता है परंतु इन सभी में अमृत सबसे श्रेष्ठ कहा गया है।

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सुख देने वाले साधनों में सबसे श्रेष्ठ भोजन को माना गया है। मनुष्य के पास सुख देने वाले बहुत से साधन होते हैं लेकिन यदि मनुष्य को भोजन प्राप्त नहीं होगा तो वह किसी प्रकार से सुखी नहीं रह सकता है।

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मनुष्य के इंद्रियों में सबसे श्रेष्ठ इंद्रिय आंख को माना गया है। जो देख नहीं सकता उसके लिए संसार अंधकार के समान होता है। बिना देखे मनुष्य संसार का सुख प्राप्त नहीं कर पाता है।

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मनुष्य के अंगो में सबसे श्रेष्ठ मस्तिष्क को माना गया है। मनुष्य का दिमाग बहुत ही महत्वपूर्ण अंग होता है सारी क्रियाकलाप मस्तिष्क से जुड़ी होती हैं इसलिए मनुष्य के अंगो में सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क को माना जाता है।

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जो ब्राम्हण धन प्राप्ति के लिए वेदों का अध्ययन करता है। जो ब्राह्मण धन प्राप्ति के लिए ही लोगों को ज्ञान देता है और जो ब्राह्मण शुद्र के अधीन होकर भोजन प्राप्त करता है वह विषहीन सर्प के समान असमर्थ ही होता है।

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