एक बार 89 हज़ार ऋषियों ने परमपिता ब्रम्हा जी से महादेव को प्रसन्न करने की विधि के बारे में पुछा. इस पर ब्रम्हा जी ने बताया की महादेव सौ कमल चढाने से जितना प्रसन्न होते हैं उतना ही एक नील कमल चढाने से प्रसन्न होते हैं
कुंभकरण एक बहुत ही शक्तिशाली राक्षस था, जिसने भगवान ब्रह्मा की तपस्या करके उनको प्रसन्न किया था। इस पर ब्रह्मा जी ने उसे कहा की मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो।
कहां जाता है की उस समय माता सरस्वती स्वर्ग को राक्षसों से बचाने के लिए कुंभकरण के मुख में विराजमान हो गई थीं। इस प्रकार कुम्भकर्ण का वरदान उसके शाप में बदल गया.
मेघनाथ के जन्म के समय रावण ने सभी ग्रहों को अपनी कक्षा से निकल कर ग्यारहवीं कक्षा में रहने को कहा था। कहा जाता है किसी की कुंडली में ऐसा होने पर उसके जीवन में धन और इच्छा पूर्ति होती है।
लेकिन शनिदेव ने ऐसा नहीं किया वे ग्यारहवीं की जगह बारहवीं कक्षा में चले गए। जिसके कारण रावण उनसे युद्ध करने चला गया। कहा जाता है कि रावण ने शनि देव को हराकर बंदी भी बना लिया था।