एक बार 89 हज़ार ऋषियों ने परमपिता ब्रम्हा जी से महादेव को प्रसन्न करने की विधि के बारे में पुछा. इस पर ब्रम्हा जी ने बताया की महादेव सौ कमल चढाने से जितना प्रसन्न होते हैं उतना ही एक नील कमल चढाने से प्रसन्न होते हैं 

ऐसे ही एक हज़ार नील कमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हज़ार बेलपत्र चढाने के फल के बराबर एक शमी पत्र चढाने का महत्त्व होता है. 

कुंभकरण एक बहुत ही शक्तिशाली राक्षस था, जिसने भगवान ब्रह्मा की तपस्या करके उनको प्रसन्न किया था। इस पर ब्रह्मा जी ने उसे कहा की मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। 

तब कुंभकरण ब्रह्मा जी से वरदान में इंद्रासन मांगना चाहता था लेकिन उसके मुख से इन्द्रासन की जगह निद्रासन निकल गया। 

कहां जाता है की उस समय माता सरस्वती स्वर्ग को राक्षसों से बचाने के लिए कुंभकरण के मुख में विराजमान हो गई थीं। इस प्रकार कुम्भकर्ण का वरदान उसके शाप में बदल गया. 

मेघनाथ के जन्म के समय रावण ने सभी ग्रहों को अपनी कक्षा से निकल कर ग्यारहवीं कक्षा में रहने को कहा था। कहा जाता है किसी की कुंडली में ऐसा होने पर उसके जीवन में धन और इच्छा पूर्ति होती है। 

लेकिन शनिदेव ने ऐसा नहीं किया वे ग्यारहवीं की जगह बारहवीं कक्षा में चले गए। जिसके कारण रावण उनसे युद्ध करने चला गया। कहा जाता है कि रावण ने शनि देव को हराकर बंदी भी बना लिया था। 

भारत के ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में शनिश्चरा मंदिर है जहाँ पर भक्त शनिदेव पर तेल चढाते हैं और गले लगकर अपनी समस्या बताते हैं. 

भक्तों का मनना है की ऐसा करने से शनिदेव उनकी परेशानियाँ सुनते है और उनकी समस्या दूर करते हैं.  

ऐसा माना जाता है की हनुमान जी ने शनिदेव को रावण की कैद से छुड़ाकर यहाँ पर ही छोड़ा था. तब से शनिदेव यहीं विराजमान हो गए.