Navratri 2022 : जगत जननी माँ दुर्गा का वाहन शेर कैसे बना इसके पीछे भी एक कथा है जिसके बारे में आज इस लेख में बताया गया है I इस कथा से जुड़ी अन्य कथाओं के बारे में भी आज हम जानेंगे। इस कथा के दो भाग है। एक माता पार्वती की तपस्या और दूसरी मंदराचल पर्वत पर रहने वाले भीलपुत्र धनुआ की तपस्या का सफल होना।आइये जानते है इसके पीछे की सत्य कथा क्या है।
सतयुग में एक बार महादेव शिव शंकर की तपस्या करते हुए माता पार्वती का रंग साँवला हो गया था। एक दिन महादेव शिव शंकर हास्य व्यंग (हँसी – हँसी ) में माता पार्वती को बोल दिया की वे बहुत काली दिख रही है I तो माता पार्वती ने उनसे कहा की अब मैं अपना रंग गोरा कर के ही वापस आपके सामने आऊँगी I इसके बाद माता तपस्या करने पर्वत पर चली गयी वहां पर उन्होंने अपना रंग गोरा करने के लिए ब्रम्हदेव की तपस्या प्रारंभ की I उन्होंने काया कल्प साधना प्रारंभ की I
भील पुत्र धनुआ की कथा :
मंदराचल पर्वत पर रहने वाले भील परिवार में एक लड़का रहता था धनुआ उसके पिता प्रतिदिन जंगल में शिकार करने जाते थे जिससे उनके परिवार का पेट भरता था I परन्तु धनुआ को शिकार करना और जानवरों को मारना बिलकुल भी पसंद नहीं था I वह जंगल में पशु पक्षियों के साथ सारा खेलता था I
एक दिन उसके पिता ने जब उसे पशु-पक्षियों के साथ खेलते हुए देखा तो उसको लगा की इसको तो आगे चल कर इनका शिकार करना होगा लेकिन ये तो उनके साथ प्रेम करने लगा है I तो उसने अपने पुत्र को कहा की अब उसको भी शिकार करना सीखना चाहिए I क्योकि अब उससे ज्यादा काम नहीं हो पता है I यह सुनकर धनुआ ने कहा की नहीं पिता जी मैं पशु पक्षियों को नहीं मार सकता उनका शिकार नहीं कर सकता हूँ I वो सब मेरे साथ खेलते है I
इतने में धनुआ की माँ आ जाती है और अपने पति को समझाती है की धनुआ सही तो कह रहा है , पशु पक्षियों को मारना पाप होता है I आप धनुआ को कोई और काम करने को कहिये I उसकी पत्नी ने एक सुझाव देते हुए कहा की पास ही के गाँव में एक महात्मा आये हुए है उनको किसी सेवक की आवश्यकता है क्यों न आप धनुआ को उनके पास भेज दीजिये जिससे उसको शिक्षा भी मिल जाएगी और साधू जी की कृपा भी प्राप्त होगी I उसका पति पहले तो मना करता है लेकिन बाद में मान जाता हैI और अपने बेटे को साधू जी के पास छोड़ आता है I
धनुआ वहाँ जाकर साधू जी की सेवा करने लगता है और वहीँ उनके आश्रम में रहने लगता है I वह सुबह से रात तक साधू जी की सेवा करता और आश्रम के सभी कार्यों में सहयोग करता था I साधू जी उसकी सेवा से प्रसन्न थे परन्तु उसके स्वभाव से नहीं थे I क्योकि वह साधू जी की हाँ में हाँ नहीं मिलाता था , वह एक सच्चा बच्चा था I जबकि वह ऋषि अहंकारी और झूंठा था और कहता था की मेरे कहने पर भगवान् मेरे सामने प्रकट हो जाते थे I धनुआ अपनी माता को अपना गुरु मानता था I उनकी दी हुई शिक्षा का पालन करता था I लेकिन साधू धनुआ से कहता था की जैसी तेरी माता मूर्ख है वैसे ही तू भी मूर्ख है तेरा कुछ नहीं हो सकता I
एक दिन जब वह साधू अपने शिष्यों के साथ वापस जाने लगे तो धनुआ को एक शिक्षा दी की तुम माता दुर्गा की पूजा करना फिर माता दुर्गा तुमको दर्शन देंगी और तुम उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना तेरा भला हो जायेगा I लेकिन धनुआ ने कहा नहीं साधू महाराज मैं अपवित्र हूँ I मैं अगर उनका नाम भी लूँगा तो मुझे पाप लगेगा I इस पर साधू जी ने कहा की अरे मूर्ख तू उनका नाम लेगा तो तेरे सारे पाप नष्ट हो जायेंगे I लेकिन धनुआ नहीं माना फिर साधू महाराज ने कहा अच्छा ठीक है तेरा मन जो करे उसकी पूजा करना लेकिन पूजा ज़रूर करना I और साधू जी वहां से चले गए I
धनुआ ने की शेर की पूजा :
साधू के चले जाने के बाद धनुआ ने सारी बात अपनी माता को बताई तो उसकी माता ने कहा की ठीक है तुझे जिसकी भी पूजा करनी हो कर लेकिन आज से ही शुरू कर दे I धनुआ ने कहा मुझे शेर बहुत प्रिय है मैं उसकी ही पूजा करूँगा और उसने एक मिटटी का शेर बनाया और उसकी पूजा करना प्रारंभ कर दिया I
उधर माता पार्वती की तपस्या संपन्न हुई और ब्रम्हदेव ने उनको दर्शन दिया और उनके सांवले रंग को गौर रंग में परिवर्तित होने का वरदान दिया और काया कल्प औषधियों का ज्ञान दिया और कहा कि साधना और औषधियों से कोई भी अपनी सांवली त्वचा को गौर कर सकता है।
जब माता पार्वती तपस्या में लीन थी तब वहां एक शेर आया जो माता के तेज से भयभीत होकर वहीं उनके समीप बैठ गया। उसके वहां रहने से माता की तपस्या में कोई बाधा नही हुई। जब माता ने साधना पूरी की तो माता ने उस शेर को आदेश दिया कि जाओ धनुआ जिस मिट्टी के शेर की पूजा कर रहा है उसके स्थान पर तुम उसे दर्शन दो और मेरी प्रतीक्षा करो।
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माता पार्वती ने दिया धनुआ को वरदान :
शेर माता की आज्ञा पाकर धनुआ के पास पहुँचा। धनुआ ने जब देखा तो उसे बहुत प्रसन्नता हुई उसे अपनी भक्ति पर विश्वास था। फिर माता पार्वती और महादेव शिव शंकर ने धनुआ को दर्शन दिया और उसको आशीर्वाद दिया। माता ने धनुआ की शेर भक्ति से प्रसन्न होकर शेर को अपना वहां बना लिया और अपने दुर्गा स्वरूप में दर्शन दिया और उसे अपनी भक्ति प्रदान की।
धनुआ अगले जन्म में ऋषि मृकण्डु के पुत्र ऋषि मार्कण्डेय बने जिन्होंंने मृत्यु पर विजय प्राप्त की।और महादेव शिव शंकर के वरदान से दुर्गा सप्तसती की रचना की I
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