प्रेमानंद जी महाराज, जो राधारानी के अद्वितीय भक्त और वृंदावन के निवासी है। आजकल के समय में एक प्रसिद्ध संत के रूप में पहचाने जाते हैं। 

उनके भजन और सत्संग में लोग दूर-दूर से आते हैं, और उनकी प्रसिद्धि व्यापक है। 

कहा जाता है कि भगवान शिव ने व्यक्तिगत रूप से प्रेमानंद जी महाराज से मिलकर उन्हें आशीर्वाद दिया। 

इस महत्वपूर्ण मिलन के बाद, प्रेमानंद जी महाराज ने अपने सामान्य जीवन को छोड़कर वृंदावन की ओर प्रस्थान किया। 

क्या आपने विचार किया है कि प्रेमानंद जी महाराज ने कैसे आम जीवन को त्यागकर भक्ति के मार्ग को अपनाया और संन्यासी बनने का निर्णय लिया? आइए, हम अब जानते हैं कि प्रेमानंद जी महाराज के जीवन के रहस्यमयी पहलुओं को। 

प्रेमानंद जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।  

उनके बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था। उनके पिता का नाम श्री शंभू पांडे और माता का नाम श्रीमती रामा देवी था।  

उनके दादाजी ने संन्यास ग्रहण किया था और उनके पिताजी भगवान की भक्ति करते थे, इसके साथ ही उनके बड़े भाई भी प्रतिदिन भगवत का पाठ किया करते थे। 

संन्यासी जीवन में वे दिन, जब प्रेमानंद जी महाराज ने भूखे पेट जीवन गुजारे, हमें अपने आदर्शों का साक्षात्कार कराते हैं। वे संन्यासी बनने के बाद घर को त्यागकर वाराणसी पहुँचे और वहाँ अपने आध्यात्मिक साधनाओं में जुट गए। 

वे प्रतिदिन तीन बार गंगा में स्नान करते थे और तुलसी घाट पर भगवान शिव और माता गंगा की पूजा करते थे। वे दिन में एक बार ही भोजन करते थे, लेकिन उनकी भूख पूरी नहीं होती थी। 

पिछले 17 सालों से उनकी दोनों किडनी खराब हो चुकी हैं। डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया है कि वे अब कुछ ही दिनों के मेहमान हैं। 

लेकिन आज भी वे डायलिसिस के लिए जाते हैं और प्रतिदिन लोगों से मिलते हैं उनकी समस्याओं का समाधान भी करते हैं। 

प्रेमानंद जी ने अपने दोनों किडनीयों का नाम भी रखा हुआ है। उन्होंने अपनी एक किडनी का नाम राधा और दूसरी किडनी का नाम कृष्ण रख दिया है।  

और यह चमत्कार ही है जो वे पिछले 17 सालों से जीवित है। उन्होंने अपना जीवन श्री राधे श्याम को समर्पित कर दिया है। 

प्रेमानंद जी महाराज का आश्रम वृंदावन, उत्तर प्रदेश में स्थित है। 

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