Watch Facts, History of watch (घड़ियों का इतिहास), घड़ियों से जुड़े रोचक तथ्य, प्राचीनकाल में घड़ियाँ कैसी थी, प्राचीनकाल में लोग समय कैसे देखते थे ? प्राचीनकाल में समय की गणना कैसे की जाती थी. पहले के लोग समय देखने के लिए किन चीज़ों पर निर्भर थे. आधुनिक घड़ियों का इतिहास क्या है, घडी का अविष्कार किसने और कब किया. आदि घड़ियों से जुडी सभी जानकारी हम आपको इस लेख के माध्यम से देने जा रहे हैं.
History of watch (घड़ियों का इतिहास)
समय देखने के लिए जिस छोटी सी घडी को हम आज अपनी कलाइयों में बाँधकर चलते है, उसका इतिहास कई साल पुराना है। प्राचीनकाल में लोग समय देखने के लिए कई अलग अलग साधनों का प्रयोग करते थे। आज जो घड़ी हम देखते हैं जिसमें 3 प्रकार की सुइयाँ होती हैं उस घड़ी का आविष्कार एक साथ नहीं हुआ था। पहले घंटे वाली सुई के साथ घड़ी बनी, फिर मिनट वाली सुई लगी फिर सेकंड वाली। लेकिन उससे भी पहले लोग समय जानने के लिए केवल सूर्य पर निर्भर रहते थे। सूर्य की स्थिति के अनुसार समय का अनुमान लगाते थे। आइये जानते हैं समय देखने के लिए किस तरह की घड़ियां बनाई गई।
Sun clock (सूर्य घड़ी)
समय के साथ लोगों ने समय का सही अनुमान लगाने के लिए सूर्य घड़ी का अविष्कार किया। इसका इस्तेमाल प्राचीन मिश्र की सभ्यता में किया जाता था। सूर्य घडी उस समय का पहला ऐसा यन्त्र था जिससे समय कि गणना की जा सकती थी। इसे एक निश्चित स्थान पर बनाया जाता था जहाँ घडी पर सूर्य का प्रकाश पड़े। इस घडी में एक गोलाकार डाइल होता था जिस पर अंक लिखे होते थे और मध्य (बीच) में एक सुई होती थी।
इस सुई को इस प्रकार मध्य में लगाया जाता था कि सूर्य का प्रकाश इस घडी कि सुई पर पडने पर इसकी छाया अंकों पर पड़ती थी तो समय का पता चल जाता था. इस घडी में एक खराबी थी कि यह केवल सूर्य की रौशनी में ही समय बता सकती थी. आकाश में बादल होने व रात के समय इस घडी में समय का अनुमान नहीं लगाया जा सकता था।
Sand clock (रेत घड़ी)
सूर्य घडी में कमियां मिलने पर समय का अनुमान लगाने के लिए एक नया साधन ढूँढने की ज़रुरत पड़ी और फिर आविष्कार हुआ जल घडी का जिसमें दो पात्रों का प्रयोग होता था। एक पात्र में जल भर दिया जाता था और इसमें नीचे एक छेद कर दिया जाता था। इस छेद से नियन्त्रित बूँदें नीचे रखे पात्र में गिरती थी। पात्र के भर जाने पर इसका नाप लेकर समय का अनुमान लगाया जाता था। इस जल घड़ी में किसी प्रकार की मशीनी उपकरण का प्रयोग नहीं होता था।
धीरे धीरे इस जल घड़ी में रेत का प्रयोग होने लगा। इस घड़ी में घड़ी के ऊपरी हिस्से में रेत भरी होती थी और निचला हिस्सा खाली होता था रेत धीरे-धीरे इस निचले हिस्से में गिरती थी जिससे समय का अनुमान लगाया जाता था।
Hydrolic Water clock (जल घड़ी)
ईशा से 3 सदी पूर्व यूनान के रहने वाले आर्किमिडीज ने boyant force की खोज कर ली थी। जिसके बाद उन्होंने एक हैड्रोलिक जल घड़ी का अविष्कार किया। जिसमें उन्होंने पानी के बतरन में एक तैरने वाला इंडिकेटर डाल दिया था। उस इंडिकेटर को एक मीटर से जोड़ दिया था। उस बर्तन में जैसे जैसे पानी भरता था वो इंडिकेटर मीटर को चलाता था जिससे समय का पता लगाया जाता था।
इस तकनीक का उपयोग करके कई देशों में कई जगह वाटर क्लॉक टावर बनाये गए थे जिनसे समय देखा जाता था।
Candle clock (मोमबत्ती घड़ी)
नवी सदी में इंग्लैंड के अल्फ्रेड महान ने मोमबत्ती द्वारा समय का आनुमान लगाने वाली विधि का आविष्कार किया। उन्होंने एक मोमबत्ती की लंबाई पर समान दूरियों पर चिन्ह अंकित कर दिया और फिर मोमबत्ती के जलने तक सभी चिन्ह की लंबाई तक पहुचने का निश्चित समय दर्ज कर लिया जाता था। इस प्रकार मोमबत्ती से समय का पता लगाया जाता था।
आधुनिक यांत्रिक घड़ियों का आविष्कार
आधुनिक यांत्रिक घडी का आविष्कार पोप सिलवेस्टर द्वितीय ने सन 996 इसवी में किया था. इनकी बनायीं हुई घडी आज की घडी जैसी नहीं थी. इस घडी में तब सिर्फ घंटे वाली सुई ही थी. बजाय इसके सन 1288 मे इंग्लैंड के वेस्टमिस्टर के घंटाघर मे घड़ियाँ लगाई गई थीं. ये घंटाघर शहर के ऐसी जगह पर बनाये जाते थे जहाँ से शहर में दूर दूर के लोग इसे देख सकें.
यूरोप में भी 13वीं शताब्दी में इन घड़ियों का प्रयोग होने लगा था. घडी में मिनट वाली सुई का आविष्कार सन 1577 इसवी में जॉस बर्गी (स्विट्ज़रलैंड) ने किया था. इससे पहले जर्मनी के न्यूरमबर्ग शहर में पीटर हेनलेन ने ऐसी घड़ी बना ली थी जिसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाया सके.
आज के समय में जो हम घडी अपने हाथों में पहनते हैं उसको सबसे पहले फ़्राँसीसी गणितज्ञ और दार्शनिक ब्लेज़ पास्कल ने बनाया था. इन्होने कैलकुलेटर का आविष्कार भी किया था. सन 1650 के आसपास तक लोग घड़ी को जेब में रखकर घूमते थे, ब्लेज़ पास्कल ने एक रस्सी से इस घड़ी को अपनी हथेली में बाँध लिया ताकि वो काम करते समय घड़ी देख सकें. जो आगे चलकर घडी में चैन और पट्टों के रूप में विकसित हुआ.
भारत में भी 18वीं शताब्दी की शुरुआत में जयपुर के महाराजा जय सिंह द्वितीय ने जयपुर, उज्जैन, मथुरा, नई दिल्ली, और वाराणसी में कुल मिलाकर पांच जंतर मंतरों का निर्माण कराया था ताकि इनकी मदद से सूरज की दिशा और उससे बनी परछाई के आधार पर समय का पता लगाया जा सके इन सभी का निर्माण 1724 और 1735 के बीच पूरा हुआ था.
Watch Facts (घड़ियों से जुड़े रोचक तथ्य)
क्या आप जानते हैं कि
प्राचीन काल में लोग समय का अनुमान लगाने के लिए सूर्य पर ही निर्भर थे ?
आधुनिक सुई वाली घड़ियों से पहले सूर्य घडी, जल घडी, रेत घडी से समय का अनुमान लगाया जाता था.
घड़ियों में सबसे पहले घंटे वाली सुई ही होती थी. बाद में मिनट वाली सुई लगायी गयी और उसके बाद सेकेंड वाली सुई लगायी गयी.
वर्तमान में जो हम जीन्स पहनते हैं उसकी सबसे छोटी जेब घडी रखने के लिए ही बनायीं गयी थी.
Watch Facts : वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में पूर्व या उत्तर दिशा की दीवार पर घडी लगाना चाहिए.
दुनिया में सबसे पहली घडी भारत के ऋषी मुनियों ने सुरज के प्रकाश से बनाई थी, वे किसी पेड़ पर पड़ने वाली छाया से समय का अनुमान लगाया करते थे।
मिश्र के लोगों ने दुनिया की सबसे पहली रेत घड़ी बनाई थी
जल घडी का आविष्कार सबसे पहले चीन में हुआ था. वे दो पात्रो में पानी भर कर, एक पात्र में छेद कर दिया करते थे, और जिस तरह से जल कम हो जाता था, उससे समय का अनुमान लगा लेते थे।
मोम घड़ी का आविष्कार अमेरीकियो ने किया था.
Rolex Brand रोज़ाना लगभग 2,000 घड़ियाँ बनाता हैं।
घडी में मिनट वाली सुई का आविष्कार सन 1577 इसवी में जॉस बर्गी (स्विट्ज़रलैंड) ने किया था.
दुनिया की सबसे महंगी घडी Super Kanpitiketed है, जिसकी कीमत करीब 68 Million है। यह एक Pocket Watch है।
दुनिया की सबसे महंगी घड़ियों की कंपनी रोलेक्स अपनी साल भर की कमाई का 90% हिस्सा चैरिटी में दान कर देता है, क्योंकि इस कंपनी का मालिक अनाथ आश्रम का बच्चा था
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