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पौराणिक रोचक तथ्य (Mythology Facts in hindi )
ऐसे मंदिर जहाँ केवल स्त्रियां ही जा सकती हैं।
भारत देश में कुछ ऐसे भी मंदिर हैं जहाँ पुरुषों का जाना वर्जित है।
1- देवी कन्याकुमारी या कुमारी अम्मान मंदिर (कन्याकुमारी)
2- कामाख्या मंदिर (असम)
3- भगवान ब्रम्हा जी मंदिर (पुष्कर, राजस्थान)
4- अट्टुकल भगवती मंदिर (केरल)
5- चककुलाथुवाकु मंदिर (केरल)
गया जी में पिंडदान करना क्यों श्रेष्ट माना जाता है
प्राचीनकाल में एक गयासुर नाम का राक्षस था जो बड़ा ही धर्मात्मा प्रकृति का था। वह भगवान विष्णु जी का भक्त था। एक बार वह भगवान नारायण को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर रहा था। वह तप करते करते भगवान् विष्णु जी की भक्ति में इतना लीन हो गया की लोग उसे देखने मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति करने लगे थे। यह देखकर ब्रम्हा जी ने गयासुर से उनकी छाती पर यज्ञ करने का वर माँगा। इस पर गयासुर मान गया। उसके लेटने से लोग उसके दर्शन नहीं कर पाते थे।
यज्ञ होने पर जब वह उठा तो भगवान विष्णु जी ने उसकी छाती पर पैर रख दिया। तब गयासुर ने भगवान से वरदान माँगा कि कृपा करके आप अपना पैर सदा के लिए मेरे ऊपर ही रखें। इसपर भगवान ने कहा की ऐसा ही होगा, और आज से यहाँ जो भी आकर अपने पितरों का पिंडदान करेगा। उसके पूर्वज सदा के लिए मोक्ष को प्राप्त हो जायेंगे। गया की धरती के नीचे गयासुर का शरीर और ऊपर भगवान विष्णु जी के पैर हैं।
ब्रम्हा जी ने बताई महादेव शिव शंकर को प्रसन्न करने की विधि?
एक बार 89 हज़ार ऋषियों ने परमपिता ब्रम्हा जी से महादेव को प्रसन्न करने की विधि के बारे में पुछा. इस पर ब्रम्हा जी ने बताया की महादेव सौ कमल चढाने से जितना प्रसन्न होते हैं उतना ही एक नील कमल चढाने से प्रसन्न होते हैं, ऐसे ही एक हज़ार नील कमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हज़ार बेलपत्र चढाने के फल के बराबर एक शमी पत्र चढाने का महत्त्व होता है.
कुंभकर्ण 6 महीने क्यों सोता था?
क्या आप इस Mythological Facts के बारे में जानते हैं कि कुंभकरण एक बहुत ही शक्तिशाली राक्षस था, जिसने भगवान ब्रह्मा की तपस्या करके उनको प्रसन्न किया था। इस पर ब्रह्मा जी ने उसे कहा की मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। तब कुंभकरण ब्रह्मा जी से वरदान में इंद्रासन मांगना चाहता था लेकिन उसके मुख से इन्द्रासन की जगह निद्रासन निकल गया। कहां जाता है की उस समय माता सरस्वती स्वर्ग को राक्षसों से बचाने के लिए कुंभकरण के मुख में विराजमान हो गई थीं। इस प्रकार कुम्भकर्ण का वरदान उसके शाप में बदल गया.
शनिदेव को किसने बंदी बनाया?
क्या आप इस Mythological Facts के बारे में जानते हैं कि मेघनाथ के जन्म के समय रावण ने सभी ग्रहों को अपनी कक्षा से निकल कर ग्यारहवीं कक्षा में रहने को कहा था। कहा जाता है किसी की कुंडली में ऐसा होने पर उसके जीवन में धन और इच्छा पूर्ति होती है। लेकिन शनिदेव ने ऐसा नहीं किया वे ग्यारहवीं की जगह बारहवीं कक्षा में चले गए। जिसके कारण रावण उनसे युद्ध करने चला गया। कहा जाता है कि रावण ने शनि देव को हराकर बंदी भी बना लिया था।
एक बार रावण की बात न मानने के कारण उसने शनिदेव को युद्ध में हराकर लंका में ही बंदी बना लिया था. इसके बाद जब माता सीता की खोज में आये महाबली हनुमान जी ने माता सीता से मिलने के बाद लंका से जाते समय उन्होंने शनिदेव को बंदी बने हुए देखा तो उन्होंने शनिदेव को मुक्त किया. हनुमान जी से प्रसन्न होकर शनिदेव ने उनको ये आशीर्वाद दिया की जो आपकी (हनुमान जी की) पूजा करेगा उस पर शनिदेव कभी बुरी दृष्टि नहीं डालेंगे अथवा वह उनकी बुरी दृष्टि से मुक्त हो जायेगा.
Mythological Facts : भारत के ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में शनिश्चरा मंदिर है जहाँ पर भक्त शनिदेव पर तेल चढाते हैं और गले लगकर अपनी समस्या बताते हैं. भक्तों का मनना है की ऐसा करने से शनिदेव उनकी परेशानियाँ सुनते है और उनकी समस्या दूर करते हैं. ऐसा माना जाता है की हनुमान जी ने शनिदेव को रावण की कैद से छुड़ाकर यहाँ पर ही छोड़ा था. तब से शनिदेव यहीं विराजमान हो गए.
रावण की बेटी कौन थी?
क्या आप इस Mythological Facts के बारे में जानते हैं कि कम्बोडियन और थाई रामायण संस्करण के अनुसार रावण की बेटी स्वर्णमछा ने अपने पिता रावण के कहने पर राम सेतु को गुप्त रूप से तोड़ने के लिए कहा इसके बाद वानरों द्वारा बनाये जा रहे रामसेतु में लगे पत्थरों को स्वर्णमछा समुद्र में जाकर चुराने लगी।
जब हनुमान जी को इस बात का पता चला तो हनुमान जी ने स्वर्णमछा को रोकने के लिए उसको रामसेतु बनाने के पीछे की पूरी घटना का वर्णन किया. हनुमान जी के इस स्वभाव और उनके रूप को देखकर स्वर्णमछा उनपर मोहित हो गयी और रामसेतु से चुराए सभी पत्थरों को वापस रामसेतु में लगा दिया.
हनुमान जी की अष्ट सिद्धियाँ और नौ निधियां कौन सी हैं ?
Mythological Facts : श्री राम जी के परम भक्त महाबली हनुमान जी को अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों का वरदान माता सीता ने दिया था. वायु पुराण और ब्रम्हांड पुराण के अनुसार नौ निधियां (पद्म, महापद्म, नील, मुकुंद, नन्द, मकर, कच्छप, शंख, मिश्र/खर्व) और अष्ट सिद्धियां (अणिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वशित्व) हैं. यह अष्ट सिद्धियाँ दुनिया में सबसे बड़ी ताकत मानी जाती है. यह सभी सिद्धियाँ केवल हनुमान जी के पास है एवं इनको संभालने की शक्ति भी केवल महाबली संकट मोचन हनुमान जी के पास हैं.
हनुमान जी का अहंकार कैसे भंग हुआ?
क्या आप इस Mythological Facts के बारे में जानते हैं कि जब रामसेतु के निर्माण से पहले भगवान राम ने रेत से महादेव की स्थापना तब हनुमान जी ने भी एक शिवलिंग का निर्माण किया था और हनुमान जी चाहते थे कि उनका बनाया हुआ शिवलिंग की ही पूजा की जाए तब भगवान राम ने हनुमान जी का मान मर्दन करते हुए यह कहा कि ठीक है मेरे बनाये हुए शिवलिंग को हटा कर अपने बनाये हुए शिवलिंग को रख दो तो उनकी ही पूजा हो जाएगी।
इसके बाद हनुमान जी ने रेत से बने श्री राम जी के शिवलिंग को हटाने की बहुत कोशिश की परंतु वे उस शिवलिंग को हिला भी नहीं पाए। इस प्रकार हनुमान जी का अहंकार टूट गया। उस शिवलिंग को रामेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। लेकिन रामेश्वरम में हनुमान जी के बनाये हुए शिवलिंग की भी पूजा की जाती है।
Mythological Facts : धृतराष्ट्र के दुख का कारण क्या था?
क्या आप इस Mythological Facts के बारे में जानते हैं कि महाभारत के युद्ध में धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों की मृत्यु उसके जीवित रहते हुए होने के पीछे का रहस्य यह था कि उसके पिछले जन्म में वह एक कबीले का राजा था जिसके राज्य में रहने वाले लकड़हारे के परिवार में उसकी पत्नी और उसके 100 पंछी थे।
जिनको राजा की बीमारी ठीक करने के लिए उसके बावर्ची ने बना के खिला दिया था। तब लकड़हारे की पत्नी ने राजा को शाप दिया कि जिस प्रकार तुमने मेरे प्रिय 100 पंछियों को मारा है और मुझे ये दुख दिया है। उसी प्रकार तुम्हें भी जीवित रहते तुम्हारे पुत्रों की मृत्यु देखनी पड़ेगी और जिस प्रकार मुझे यह दुख प्राप्त हुआ है उसी प्रकार तुम्हें भी यह दुख प्राप्त होगा।
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हनुमान जी के कितने भाई थे ?
ब्रम्हांड पुराण के अनुसार पवनपुत्र हनुमान जी के 5 सगे भाई भी थे। वे पांचों भाई विवाहित थे। उनकी भी संताने थीं। ब्रम्हांड पुराण में यह उल्लेखित है की वानर राज केसरी के 6 पुत्र थे। जिनमें हनुमान जी सबसे बड़े थे। उनके भाइयों का नाम क्रमशः इस प्रकार हैं –
- मतिमान,
- श्रुतिमान,
- केतुमान
- गतिमान
- धृतिमान
हनुमान जी की भी मृत्यु हुई थी?
क्या आप इस Mythological Facts के बारे में जानते हैं कि वैसे तो भगवान श्रीराम ने हनुमान जी को चिरंजीवी होने का वरदान दिया था। लेकिन उड़िया भाषा की विलंका रामायण के अनुसार हनुमान जी की मृत्यु हुई थी। इसमें बताया गया है कि एक बार विलंका राक्षस राज सहशिरा से युद्ध करने भगवान श्री राम विलंका गए थे। वहां भगवान श्रीराम को राक्षसों में बंदी बना लिया था। कई दिनों तक भगवान श्री राम के वापस ना आने पर माता सीता ने हनुमान जी को श्री राम की खोज करने के लिए विलंका भेजा।
भगवान श्री राम की खोज में हनुमान जी विलंका पहुंचे। लंका में द्वार के पास एक तालाब था इस तालाब में स्वच्छ जल था। लेकिन इस तालाब की एक खासियत थी की कोई शत्रु अगर राज्य का अहित करने के लिए मकसद से वहां आता है तो वह जल जहर बन जाता था। मुख्य द्वार पर एक राक्षसी का पहरा था जो शत्रुओं को पहचान कर उनकी हत्या कर देती थी।
हनुमान जी के वहां पहुंचने पर राक्षसी को समझ आ गया कि यह कोई शत्रु है तो वह अपना शरीर छोटा करके हनुमान जी के कंठ में जाकर बैठ जाती है इस कारण हनुमान जी को बहुत तेज प्यास लगने लगती है। प्यास लगने के कारण हनुमान जी उस तालाब का जल पीने लगते हैं जैसे ही वह जल पीते हैं वैसे ही हनुमान जी की मृत्यु हो जाती है।
कई दिन बीत जाने पर जब भगवान श्री राम और हनुमान जी का कुछ पता नहीं चलता है तो देवता पवन देव से पूछते हैं कि आपका पुत्र कहां है। तब बृहस्पति देव पता लगा कर बताते हैं की हनुमान जी की विलंका में मृत्यु हो चुकी है। इसके बाद सभी देवता गण हनुमान जी को संजीवनी और अमृत के द्वारा जीवित करते हैं। हनुमान जी 6 महीने के बाद मृत्यु की गोद से वापस आ जाते हैं।
हिन्दू धर्म में कितने देवता होते हैं?
हिंदू धर्म के अनुसार गाय में 33 कोटि देवता निवास करते हैं। कोटि का अर्थ करोड़ नहीं बल्कि प्रकार होता है अर्थात 33 प्रकार के देवता गौ माता में निवास करते हैं। इन देवताओं में 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विन कुमार हैं। ये सभी मिलकर कुल 33 कोटि देवता होते हैं।
हिन्दू धर्म ग्रंथों में चल और अचल दोनों प्रकार के देवताओं का उल्लेख किया गया है। श्री मद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्णा ने कहा है कि चल देवता के रूप में धरती पर सभी प्राणी हैं जिनमें आत्मा रूप में मैं स्वयं निवास करता हूं। अचल देवता उन्हें माना गया है जिनकी हिन्दू धर्म में मूर्ति रूप में पूजा की जाती है।
द्रौपदी का चीरहरण होने पर भगवान श्री कृष्ण ने उनकी लाज क्यों बचाई?
ये तो आप सभी को पता होगा कि द्रौपदी का जब भरी सभा में चीरहरण हुआ था तब उस सभा में कोई भी नहीं था उनकी रक्षा करने वाला यहां तक कि द्रौपदी के पांचों पतियों ने भी उनकी रक्षा नहीं की तब उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को पुकारा और उन्होंने उनकी लाज बचाई। लेकिन इस घटना के पीछे द्रौपदी के कर्मों का फल था जिसकी वजह से भगवान श्रीकृष्ण जी ने द्रौपदी की लाज बचाई। लेकिन क्या आप इस Mythological Facts के बारे में जानते हैं कि
महाभारत के अनुसार जब युधिष्ठिर ने जब राजसूय यज्ञ किया था तब महाराज युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण को प्रथम अर्घ्य दिया जिससे शिशुपाल क्रोधित हो गया और श्रीकृष्ण को गालियां देने लगा जिससे क्रोधित होकर भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का सिर काट दिया था। जिससे उनकी उंगली कट गई थी। उनकी उंगली से रक्त निकलता देख कर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर भगवान की उंगली में पट्टी बांध दी थी जिसके फल स्वरूप भगवान ने द्रौपदी के चीरहरण के समय उनकी साड़ी ( चीर) बढ़ा दिया और द्रौपदी की लाज बचाई।
इसके अलावा द्रौपदी का एक कर्म पिछले जन्म का भी था जिसके बारे में शायद ही आपको पता होगा। एक बार की बात है द्रौपदी के किसी पिछले जन्म में, एक नदी में एक संत स्नान कर रहे थे। स्नान करते समय उनकी लंगोट खुलकर बह जाती है। सन्त बहुत ही लज्जित अवस्था में नदी के अंदर ही खड़े रहते हैं। लेकिन नदी के बाहर नही निकल रहे होते हैं। यह देखकर द्रौपदी उनके पास जाकर उनको नमन करती है और सन्त से उनके नदी से बाहर न निकलने का कारण पूछती हैं।
तब सन्त सारी बात बताते है। इस पर द्रौपदी अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर सन्त को दे देती है। जिसे पहनकर सन्त नदी से बाहर निकल पाते हैं। इसके बाद सन्त जी द्रौपदी को आशीर्वाद देते हैं कि आज जैसे तुमने मेरी लाज बचाई है भगवान तुम्हारी लाज बनाये रखे। इसी कर्म के कारण भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाई थी।
कलियुग कहाँ कहाँ निवास करता है?
महान अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित ने कलियुग को केवल 4 जगह रहने की अनुमति दी थी।
- वेश्यालय
- मदिरालय
- स्वर्ण
- द्युत (जुआ)
शकुनि के पासे चमत्कारी क्यों थे?
क्या आप इस Mythological Facts के बारे में जानते हैं कि महाभारत में शकुनि जोकि बहुत ही चालक था। वह द्युत क्रीड़ा का माहिर खिलाड़ी था। उसके पास जो पासे थे वह बहुत ही चमत्कारी थे। वह जो भी अंक बोलता था उसके पासे में वही अंक आता था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शकुनि के वह पासे उसके पिता की अस्थियों से बने थे और सिर्फ उसकी बात मानते थे।
क्या कभी पर्वतों के भी पंख हुआ करते थे?
क्या आप इस Mythological Facts के बारे में जानते हैं कि सतयुग में पर्वतों के भी पंख हुआ करते थे। जब इंद्रदेव के यज्ञ में बाधा उत्पन्न हुई तो उन्होंने सभी पर्वतों के पंख काट दिए। लेकिन वायुदेव ने पर्वतों के राजा मैनाक पर्वत की रक्षा की। यही मैनाक पर्वत एकलौता पंखधारी पर्वत बचा। समुद्र लांघकर जब हनुमान जी लंका जा रहे थे तो इसी मैनाक पर्वत ने हनुमान जी से विश्राम करने की विनती की थी।
मनुष्य की शक्ति का मुख्य स्रोत कहाँ होता है?
औषधि विज्ञान के अनुसार मानव शरीर मे सभी शक्तियों का मुख्य स्रोत हृदय को माना जाता है। परंतु श्रीमद भगवद गीता और मुंडक उपनिषद के अनुसार अणु-आत्मा ही है जो हृदय में रहकर अपने प्रभाव से सम्पूर्ण शरीर को शक्ति प्रदान करता है।
भारत का सर्व प्राचीन धर्म ग्रंथ वेद है जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है। वेद चार हैं – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद। इन चार वेदों को संहिता कहा जाता है।
वेद में क्या है ?
ऋग्वेद
ऋचाओं के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है। ऋग्वेद में 10 मंडल 1028 सूक्त एवं 10462 ऋचायें है। इस वेद से आर्य के राजनीतिक प्रणाली एवं इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है इसके नवे मंडल में देवता सोम का उल्लेख है। ऋग्वेद भगवान विष्णु के वामन अवतार के 3 पग के आख्यान का प्राचीनतम स्रोत है। ऋग्वेद में इंद्र के लिए 250 और अग्नि के लिए 200 ऋचाओं की रचना की गई है।
यजुर्वेद
सस्वर पाठ के लिए मंत्रों तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन यजुर्वेद कहलाता है। इसके पाठ करता को अध्वर्यु कहते हैं। यजुर्वेद में यज्ञों के नियमों एवं विधि विधान ओं का संकलन मिलता है। यह एक ऐसा भेद है जो गद्य एवं पद्य दोनों में है।
सामवेद
साम का शाब्दिक अर्थ है गान। इस वेद में मुख्यता यज्ञों पर गाए जाने वाली रिचाओं मंत्रों का संकलन है। इस वेद को भारतीय संगीत का जनक माना जाता है।
अथर्ववेद
अथर्ववेद को ऋषि अथर्वा ने रचा था। इस वेद में कुल 731 मंत्र तथा लगभग 6000 पद्य हैं। इसके कुछ मंत्र ऋगवैदिक मंत्रों से भी प्राचीनतर है। अथर्ववेद कन्याओं के जन्म की निंदा करता है। ऐतिहासिक दृष्टि से अथर्ववेद का महत्व इस बात में है कि इसमें सामान्य मनुष्यों के विचारों तथा अंधविश्वासों का विवरण मिलता है।
अथर्ववेद का प्रतिनिधि सूक्त पृथ्वी सूक्त को माना जाता है। इसमें मानव जीवन के सभी पक्षों- गृह निर्माण, कृषि की उन्नति, व्यापारिक मार्गों की खोज, रोग निवारण, समन्वय, विवाह तथा प्रणय गीतों, राज भक्ति, राजा का चुनाव, वनस्पति एवं औषधि, शाप, वशीकरण, प्रायश्चित, मातृभूमि महात्मय आदि का विस्तृत विवरण दिया गया है। कुछ मंत्रों में जादू टोने का भी वर्णन किया गया है।
अथर्ववेद में यह भी बताया गया है की राजा परीक्षित कुरुओं के राजा थे। इसमें सभा और समिति को प्रजापति की दो पुत्रियों के रूप में बताया गया है। अधिकतर पुराण सरल संस्कृत श्लोक में लिखे गए हैं जिन्हें स्त्रियां तथा शूद्र जिन्हें वेद पढ़ने की अनुमति नहीं थी वह भी पुराण सुन सकते थे।
गणेश जी को दूर्वा क्यों अर्पित करते हैं ?
हिन्दू धर्म में गणेश जी को दूर्वा (दूब घास के तिनके) अर्पित किये जाने के पीछे की एक कथा है की अलगासुर नाम का राक्षस सभी ऋषियों को निगल जाता था। तब गणेश जी ने उनकी ऋषियों की रक्षा उस अलगासुर निगल लिया था। जिसके कारण गणपति के पेट में जलन होने लगी थी। उनकी जलन को शांत करने के लिए ऋषि कश्यप ने गणेश जी को दूर्वा तिनके का भोग लगाया था जिससे उनकी थी। तभी से गणेश जी की पूजा में उनको दूर्वा अर्पित की जाती है।
माता सीता ने लंका में कभी भोजन क्यों नहीं किया ?
रावण जब माता सीता जी को अपहरण करके लंका लेकर आया तब उसने माता सीता को अपने देश की सबसे सुंदर वाटिका यानी अशोक वाटिका में रखा था। जहाँ पर अनेक प्रकार के स्वादिष्ट और रसीले फल लगे हुए थे। रावण उनके लिए नित्य स्वादिष्ट व्यंजन बनवाता था लेकिन माता सीता जी ने कभी लंका का भोजन फल इत्यादि ग्रहण नहीं किया था। इसके पीछे एक बहुत ही बड़ा रहस्य था।
माता सीता जी लंका में कभी भूंख ही नहीं लगी। क्योकि जिस दिन रावण माता सीता जी को लंका लाया था उसी दिन रात्रि के समय ब्रम्हा जी ने इंद्रा को आदेश दिया कि आप जाकर माता सीता जी को कुछ भोजन कराएँ। ब्रम्हा जी का आदेश पाकर इंद्र देव तुरंत माता सीता जी के लिए खीर लेकर अशोक वाटिका पहुंचे। वह खीर का भोग एक दिव्य भोग था जिसे खाकर माता सीता जी की क्षुदा (भूंख) शांत हो गयी थी। इंद्रा देव ने कि इस खीर को खाने के बाद आपको लंका में कभी भूंख नहीं लगेगी।
इसी प्रकार वनवास के समय भगवान् राम, माता सीता और भैया लक्ष्मण कई ऋषियों के आश्रमों में गए और उनकी सेवा की। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर एक ऋषि पत्नी ने माता सीता को दिव्य वस्त्र भी दिए थे जो कभी भी मैले नहीं होते थे।
चमत्कारी शिवलिंग
बैंगलोर का श्री गवि गंगाधरेश्वर मंदिर (गवि गोपुरम गुफा मंदिर) जहां का शिवलिंग एक चमत्कारी शिवलिंग है। इस मंदिर में यदि कोई घी चढ़ाता है और पुजारी जी उस घी को शिवलिंग पर चढ़ाते हैं तो वह घी चमत्कारी रूप से माखन में बदल जाता है।
भगवान श्री कृष्ण मोर पंख क्यों धारण करते थे?
रामायण काल में एक बार वनवास के समय माता सीता जी वन में बहुत प्यास लगी। ऐसे में भगवान श्री राम जी ने आस पास कोई जल का स्रोत खोजना प्रारम्भ किया। लेकिन जल का कोई भी स्रोत न मिला। तब भगवान श्री राम जी ने वन से प्रार्थना की कि इस वन में यदि कहीं जल हो तो हमारा मार्गदर्शन करें और हमे जल तक पहुचाये।
इतने में वहां एक मोर आता है जो राम जी से कहता है कि प्रभु मैं जलाशय का मार्ग जनता हुँ। आप मेरे साथ चलें। लेकिन प्रभु मैं तो उड़ कर जाऊंगा और आप पैदल चलेंगे तो आप मार्ग भूल जाएंगे। अतः मैं रास्ते में अपने पंख बिखेरता जाऊंगा। आप उन्ही पंख के पीछे पीछे आ जाइयेगा।
मोर अपने पंख बिखेरता हुआ जलाशय तक पहुँचा। पीछे से श्री राम जी, माता सीता और लक्ष्मण जी पहुंचे तो वहां देखा कि मोर बिना पंख के घायल अवस्था में पड़ा हुआ मृत्यु का इंतज़ार कर रहा था। ये सब देखकर भगवान श्री राम जी ने मोर से कहा कि आज तुमने हमारी प्यास बुझाने के लिए इतना बड़ा त्याग किया है।
तुमने अपने प्राणों के बारे में न सोचकर हमारे प्राणों के बारे में सोचा। मोर बोला जो सारे संसार की प्यास बुझाते हैं। आज मुझे उनकी प्यास बुझाने का मौका मिला है। इसे मैं कैसे छोड़ सकता था। भगवान श्री राम ने उस मोर को मुक्ति प्रदान की और कहा कि इस त्याग का फल तुम्हें अवश्य मिलेगा। अगले जन्म में जब भगवान ने श्री कृष्ण का अवतार लिया तो अपने सिर के मुकुट पर मोर पंख को धारण किया।
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